आज यूँ मुझ से मिला है कि ख़फ़ा हो जैसे उस का ये हुस्न भी कुछ मेरी ख़ता हो जैसे वही मायूसी का आलम वही नौमीदी का रंग ज़िंदगी भी किसी मुफ़्लिस की दुआ हो जैसे कभी ख़ामोशी भी यूँ बोलती है प्यार के बोल कोई ख़ामोशी में भी नग़्मा-सरा हो जैसे हर्फ़-ए-दुश्नाम से यूँ उस ने नवाज़ा हम को ये मलामत ही मोहब्बत का सिला हो जैसे इस तकल्लुफ़ से सितम हम पे रवा रखता है ये भी मिनजुमला-ए-आदाब-ए-वफ़ा हो जैसे ग़म-ए-अय्याम पे यूँ ख़ुश हैं तिरे दीवाने ग़म-ए-अय्याम भी इक तेरी अदा हो जैसे बंदगी हम को तो आई कि न आई लेकिन हुस्न यूँ रूठ गया है कि ख़ुदा हो जैसे