आज़ार मिरे दिल का दिल-आज़ार न हो जाए जो कर्ब निहाँ है वो नुमूदार न हो जाए आवाज़ भी देती है कि उठ जाग मेरे लाल डरती भी है बच्चा कहीं बेदार न हो जाए जब तक मैं पहुँचता हूँ कड़ी धूप में चल कर दीवार का साया पस-ए-दीवार न हो जाए पर्दा न सरक जाए कहीं ऐ दिल-ए-बेताब वो पर्दा-नशीं और पुर-असरार न हो जाए बढ़ता चला जाता है ज़माने से तअल्लुक़ ये सिलसिला ज़ंजीर-ए-गिराँ-बार न हो जाए आराम से रहता ही नहीं बंदा-ए-बे-दाम जब तक किसी मुश्किल में गिरफ़्तार न हो जाए