आँख कुछ बे-सबब ही नम तो नहीं ये कहीं आप का करम तो नहीं हम ने माना कि रौशनी कम है फिर भी ये सुब्ह शाम-ए-ग़म तो नहीं इश्क़ में बंदिशें हज़ार सही बंदिश-ए-दाना-ओ-दिरम तो नहीं था कहाँ इश्क़ को सलीक़ा-ए-ग़म वो नज़र माइल-ए-करम तो नहीं मोनिस-ए-शब रफ़ीक़-ए-तन्हाई दर्द-ए-दिल भी किसी से कम तो नहीं वो कहाँ और कहाँ सितमगारी कुछ भी कहते हों लोग हम तो नहीं शिकवे की बात और है वर्ना लुत्फ़-ए-पैहम कोई सितम तो नहीं देख ऐ क़िस्सा-गो-ए-रंज-ए-फ़िराक़ नोक-ए-मिज़्गान-ए-यार नम तो नहीं उन के दिल से सवाल करता है ये तबस्सुम शरीक-ए-ग़म तो नहीं