आँख पड़ते ही न था नाम शकेबाई का दर-ए-मय-ख़ाना था नक़्शा तिरी अंगड़ाई का मा-सिवा उस के नहीं जिस का कोई और शरीक कौन बतलाएगा आलम मिरी तन्हाई का पाक-दामानी-ए-यूसुफ़ थी ज़ुलेख़ा की सज़ा रास्ता चाक से पैदा हुआ रुस्वाई का सख़्तियाँ हिम्मत-ए-दिल हो तो बदल जाती हैं मौत इक खेल है लेकिन तिरे शैदाई का हम को उन मय-कदा-ए-दहर से उम्मीद नहीं साग़र उल्टा हुआ है गुम्बद-ए-मीनाई का तार-ए-मलबूस में थी या ख़त-ए-तक़्दीर में थी हाल खुलता नहीं याक़ूब की बीनाई का आने दे नींद तो सब सोएँ मगर ऐ तौबा नाला-ए-इश्क़ का इस पर शब-ए-तन्हाई का दिल-ए-नाज़ुक मुतहम्मिल नहीं ग़म हो कि सुरूर फूल मक़्तूल है ख़ुद अपनी ही रा'नाई का न हुआ वस्ल-ए-तमन्ना न घटी वहशत-ए-दिल क्या नतीजा था मिरी बादिया-पैमाई का वो न आएँ सर-ए-बालीं कि मैं बचने का नहीं दम न टूटे मिरे साथ इन की मसीहाई का आइना जिस में सदा डूब के उभरा क्या हुस्न एक ठहरा हुआ पानी है ख़ुद-आराई का साथ देने का तो एहसान है मुझ पर लेकिन शम्अ' ने नाम डुबोया मिरी तन्हाई का हुस्न के हाथ बंधे तो वो ज़रा देर सही मुझ पर एहसाँ तिरी आई हुई अंगड़ाई का उस के सुनने के लिए जम्अ' हुआ है महशर रह गया था जो फ़साना मिरी रुस्वाई का शौक़-ए-पा-बोसी-ए-महबूब था वर्ना 'साक़िब' संग-ए-दर पर कोई मौक़ा था जबीं-साई का