आँख रक्खे हुए सितारे पर कश्तियाँ जा लगीं किनारे पर वक़्त पड़ने पे आज़मा लेना जान दे देंगे इक इशारे पर मोड़ पर उस ने मुड़ के देखा था जी रहे हैं इसी सहारे पर झील आँखों में सुर्मगीं आँसू चाँद बे-ख़ुद था इस नज़ारे पर लब-ओ-रुख़्सार आतिशीं उस के शबनमी रक़्स था शरारे पर ओट में फिर छपा लिया माँ ने लाश माँ की गिरी दुलारे पर शहर सारा छतों पे था 'बाबर' चाँद उतरा था फिर चौबारे पर