आँख से आँख मिले रम्ज़ खुले बात चले दिन निकलने दो कि पहलू से मिरे रात चले तेरी चूड़ी की खनक से हुआ तस्ख़ीर ये दिल तेरी आँखों के इशारों पे ख़यालात चले वो सहर-ख़ेज़ हँसी वो तिरा शर्मा जाना कैसे कैसे मिरी हस्ती पे तिलिस्मात चले ज़िक्र को नेज़े की रिफ़अत पे सजाया जिस ने रह गया हक़ का वो मरकज़ सो मज़ाफ़ात चले कोई तख़्लीक़ के अस्बाब भी समझे ना ज़रा एक नुक़्ते से अयाँ रंग यहाँ सात चले जब मैं तस्ख़ीर तिरे राज़ को कर पाया तो फिर मिरे रक़्स पे दुनिया तिरे नग़्मात चले मकतब-ए-अक़्ल पढ़ा पढ़ के चला मयख़ाने जब न दानाई चली फिर मिरे जज़्बात चले पुर्ज़े पुर्ज़े है तिरे हिज्र में पैराहन-ए-जाँ मुझ में साँसों की तरह यूँ तिरे सदमात चले लौट आएगी मिरी सम्त 'शजर' हरियाली फिर जो इक बार उसी लम्स की ख़ैरात चले