आँख से ख़्वाब का रिश्ता नहीं रहने देती याद उस की मुझे तन्हा नहीं रहने देती लज़्ज़त-ए-दर-ब-दरी में बड़ी वुसअ'त है कि ये दर-ओ-दीवार का झगड़ा नहीं रहने देती घर हो या रौनक़-ए-बाज़ार कहीं भी जाऊँ बे-क़रारी तो किसी जा नहीं रहने देती बंद कर लूँ तो अजब नक़्श नज़र आते हैं आँख महरूम-ए-तमाशा नहीं रहने देती ख़्वाहिश-ए-ज़र की हवा दिल के सियह-ख़ाने में इक दिया है जिसे जलता नहीं रहने देती