आँख उन से मिरी मिली थी कभी दिल में इक आग सी लगी थी कभी याद है रात वो हसीं अपनी आँखों आँखों में जो ढली थी कभी बारहा मेरा आना जाना था ये मिरे यार की गली थी कभी दिल के इस बाग़ में गुलाब की वो एक ताज़ा कली खिली थी कभी उस को इक दिन तो गिर ही जाना था कच्ची दीवार जो बनी थी कभी याद है अपनी ज़िंदगी भी 'अरुण' चंद काँटों में ही पली थी कभी