आकर किसी ने ख़्वाब में जल्वा दिखा दिया मूसा की तरह मुझ को भी बे-ख़ुद बना दिया इक तीर-ए-नाज़ चुपके से दिल पर चला दिया या जाने किस ने ख़ून-ए-तमन्ना बहा दिया इस तरह मैं ने की है अदा रस्म इश्क़ की मेहमाँ बना के ग़म को कलेजा खिला दिया आदम की इक फ़ुग़ाँ से लरज़ने लगी ज़मीं जब आह की तो अर्श-ए-मुअ'ल्ला हिला दिया 'अहमद' उसे सुराही-ओ-साग़र से क्या ग़रज़ साक़ी ने जिस को अपनी नज़र से पिला दिया