आँखें ग़म-ए-फ़िराक़ से हैं तर इधर-उधर ग़म का असर है आज बराबर इधर-उधर थे जो वफ़ा-शिआर वो नज़्र-ए-सितम हुए अब किस को ढूँढता है सितमगर इधर-उधर महफ़िल में तेरे हुस्न पे क़ुर्बान होगा कौन दीवाने चल दिए जो निकल कर इधर-उधर साक़ी के साथ रौनक़-ए-मय-ख़ाना भी गई टूटे पड़े हैं शीशा-ओ-साग़र इधर-उधर ऐसा न हो ज़माना हँसे तुम पर एक दिन लिक्खो न मेरे हाल पे हँस कर इधर-उधर दिल में कभी है दर्द जिगर में कभी ख़लिश जैसे छुपे हों सीने में नश्तर इधर-उधर अपनी ग़ज़ल सुनाओ 'शमीम' अहल-ए-ज़ौक़ को ज़ाएअ' करो न फ़िक्र के जौहर इधर-उधर