आख़िरी साँसों तलक लड़ती रही ज़िंदगी उम्मीद हूँ कहती रही चंद जुमलों में कही सब के लिए वो कहानी उम्र-भर चलती रही जाने क्या है बात पर मंज़िल मुझे रहगुज़र छू कर तिरी मिलती रही याद तो आया न हो ऐसा नहीं दीद की ख़्वाहिश मगर मिटती रही लाख घाव को छुपाया था मगर ज़ख़्म ढकने की रिदा फटती रही