आख़िरी वार कर रहा हूँ मैं अपना इंकार कर रहा हूँ में आड़ अपने ही जिस्म की ले कर रूह को तार कर रहा हूँ मैं अपने दुख बाँट कर ज़माने में कितना ईसार कर रहा हूँ मैं है मोहब्बत भी कार-ए-फ़न कि जिसे दिल से हर बार कर रहा हूँ मैं किस महारत से इस ड्रामे में अपना किरदार कर रहा हूँ मैं तीर खाने से उस के इस फ़न में उस को फ़नकार कर रहा हूँ मैं कुछ तो बीमार है वो पहले से और बीमार कर रहा हूँ मैं दोस्त अहबाब क्यों ख़जिल हैं आज ज़िक्र-ए-अग़्यार कर रहा हूँ मैं मैं अगर जा चुका तो फिर किस से अब भी तकरार कर रहा हूँ मैं अपनी नाकामी की दुआ कर के मर्ज़ी याद कर रहा हूँ मैं ख़ुद ही ता'मीर कर के बुत अपना ख़ुद ही मिस्मार कर रहा हूँ मैं इक न इक शय हर उम्र में अब भी बे-सरोकार कर रहा हूँ मैं कोई तो मुझ से हार कर जीते सब से ही हार कर रहा हूँ मैं जाने किस अहद के लिए 'राशिद' उस को तय्यार कर रहा हूँ मैं