आँखों आँखों में गुज़ारी शब-ए-हिज्राँ हम ने अश्क रहने दिए हर शब पस-ए-मिज़्गाँ हम ने ज़िंदगी तुझ से इबारत है सो तेरी ख़ातिर ज़ीस्त की रह में बिछाईं सदा कलियाँ हम ने साँस की लय पे धड़कता है तुम्हें देख के दिल दिल को देखा है कई बार ही रक़्साँ हम ने मुंदमिल ज़ख़्म हुए थे न हमारे दिल के फिर नए ग़म को किया आज ही मेहमाँ हम ने ख़्वाब आँखों में कोई कैसे उतर कर आता नींद का जबकि लिया ही नहीं एहसाँ हम ने रात रोए थे बहुत कोई बहाना न बना रात फिर उठता हुआ देखा है तूफ़ाँ हम ने बिन बुलाए ही चली आई शब-ए-ग़म देखो देखा 'दिलशाद' को फिर आज परेशाँ हम ने