आँखों में अश्क भी हैं मिरे लब पे आह भी दुश्वार किस क़दर है मोहब्बत की राह भी ग़म है हमें तो ये है ज़माने के साथ साथ तुम भी बदल रहे हो तुम्हारी निगाह भी वो आश्ना-ए-लफ़्ज़-ए-वफ़ा तक न हो सके लफ़्ज-ए-वफ़ा पे हो गए हम तो तबाह भी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ात ब-सद-शौक़ कीजिए लेकिन कुछ इस तरह कि रहे रस्म-ओ-राह भी इस दौर-ए-आगही में तरक़्क़ी के बावजूद आसाँ नहीं हयात से करना निबाह भी