आँखों में निहाँ है जो मुनाजात वो तुम हो जिस सम्त सफ़र में है मिरी ज़ात वो तुम हो जो सामने होता है कोई और है शायद जो दिल में है इक ख़्वाब-ए-मुलाक़ात वो तुम हो दिन आए गए जैसे सराए में मुसाफ़िर ठहरी रही आँखों में जो इक रात वो तुम हो हर बात में शामिल हैं तसव्वुर के कई रंग हर रंग-ए-तसव्वुर में है जो बात वो तुम हो जब धूल हुए राह-ए-सफ़र में तो ये जाना मंज़िल-गह-ए-जाँ हैं जो मक़ामात वो तुम हो दुख हद से जो गुज़रा तो खुला दिल पे कि यूँ भी दर-पर्दा है जो महव-ए-मुदारात वो तुम हो दिल-जूई का अंदाज़ भी नरमी भी वही है सीने पे हवा रखती है जो हात वो तुम हो बाक़ी तो अंधेरे ही मुहीत-ए-दिल-ओ-जाँ हैं महर-ओ-मह-ओ-अंजुम हैं जो लम्हात वो तुम हो हाँ मुझ पे सितम भी हैं बहुत वक़्त के लेकिन कुछ वक़्त की हैं मुझ पे इनायात वो तुम हो