आँखों में तो आँसू को सुकूँ तक नहीं मिलता दामन पे जब आता है तो होता है रवाँ और ऐ क़ुव्वत-ए-पर्वाज़ ज़रा और सहारा सुनते हैं सितारों में हैं आबाद जहाँ और गहरा हो अगर सज्दा तो खिंच आते हैं जल्वे पेशानी-ए-आलम पे उभरता है निशाँ और तक़्सीम अगर होता है शो'लों में नशेमन जलते हुए तिनकों से लिपटता है धुआँ और हो रंग पे महफ़िल तो बदलती हैं फ़ज़ाएँ ऐ 'फ़ज़्ल' सँवर जाता है अंदाज़-ए-बयाँ और