आँखों में धूप दिल में हरारत लहू की थी आतिश जवान था तो क़यामत लहू की थी ज़ख़्मी हुआ बदन तो वतन याद आ गया अपनी गिरह में एक रिवायत लहू की थी ख़ंजर चला के मुझ पे बहुत ग़म-ज़दा हुआ भाई के हर सुलूक में शिद्दत लहू की थी कोह-ए-गिराँ के सामने शीशे की क्या बिसात अहद-ए-जुनूँ में सारी शरारत लहू की थी रुख़्सार ओ चश्म-ओ-लब गुल ओ सहबा शफ़क़ हिना दुनिया-ए-रंग-ओ-बू में तिजारत लहू की थी 'ख़ालिद' हर एक ग़म में बराबर शरीक था सारे जहाँ के बीच रिफ़ाक़त लहू की थी