आँखों में तेज़ धूप के नेज़े गड़े रहे हम तेरे इंतिज़ार में फिर भी खड़े रहे तुम रुक गए प संग का मेला न कम हुआ इस कारवाँ के साथ मुसाफ़िर बड़े रहे मेरे बदन पे सिर्फ़ हवा का लिबास था तेरी क़बा में चाँद सितारे जड़े रहे साए को लोग पूजते आए हैं देर से पत्ते हमेशा पाँव में बिखरे पड़े रहे शायद वो 'राम' मेरी तरह बद-नसीब थे जो लोग तेरे प्यार की ज़िद पर अड़े रहे