आँखों पर आह-ए-यास का पर्दा सा पड़ गया दुनिया उजड़ गई कि मिरा दिल उजड़ गया अल्लाह कैसा तफ़रक़ा मरने से पड़ गया मैं एक साथ सारे जहाँ से बिछड़ गया अब सोज़-ए-दिल के नाज़ उठाए न जाएँगे आँसू जहाँ गिरा वहीं नासूर पड़ गया मरना पड़ा किसे तिरे ज़ौक़-ए-गुनाह से ऐ दिल ख़बर भी है कोई ग़ैरत से गड़ गया आँखों में अब तो और भी फिरता है आशियाँ हाँ सुन लिया बहार का ख़ेमा उखड़ गया वक़्त-ए-विदाअ' दिल पे कुछ ऐसी गुज़र गई अब तक ख़बर नहीं कि मैं किस से बिछड़ गया वो कौन और चीज़ है आशिक़ का दिल नहीं जिस दिल में बन के नक़्श-ए-तमन्ना बिगड़ गया क़ुदरत ने हाथ चूम लिए उस के वज्द में जो नक़्श-ए-काएनात पर आईना जड़ गया दुनिया कराहने की सदा बन के रह गई मैं दिल को मरते देख के आफ़त में पड़ गया