आँखों से अयाँ ज़ख़्म की गहराई तो अब है अब आ भी चुको वक़्त-ए-मसीहाई तो अब है पहले ग़म-ए-फ़ुर्क़त के ये तेवर तो नहीं थे रग रग में उतरती हुई तन्हाई तो अब है तारी है तमन्नाओं पे सकरात का आलम हर साँस रिफ़ाक़त की तमन्नाई तो अब है कल तक मिरी वहशत से फ़क़त तुम ही थे आगाह हर गाम पे अंदेशा-ए-रुस्वाई तो अब है क्या जाने महकती हुई सुब्हों में कोई दिल शामों में किसी दर्द की रानाई तो अब है दिल-सोज़ ये तारे हैं तो जाँ-सोज़ ये महताब दर-असल शब-ए-अंजुमन-आराई तो अब है सफ़-बस्ता हैं हर मोड़ पे कुछ संग-ब-कफ़ लोग ऐ ज़ख़्म-ए-हुनर लुत्फ़-ए-पज़ीराई तो अब है