आँखों से परे नींद की रफ़्तार में रहना हर पल किसी ना-दीद के दीदार में रहना खो जाना उसे देख के उर्यां के सफ़र में छूते ही उसे हजला-ए-असरार में रहना इक ख़्वाब-ए-दरीदा को रग-ए-हर्फ़ से सेना फिर ले के उसे कूचा-ओ-बाज़ार में रहना ख़ुद अपने को ही देख के हैरान सा होना नर्गिस की तरह मौसम-ए-बीमार में रहना मरना यूँही अबरेशम-ओ-कम-ख़्वाब हवस में दम तोड़ के ज़िंदा कभी दीवार में रहना हसरत सी लिए ख़िल्क़त-ए-मा'सूम में फिरना साज़िश की तरह गर्दिश-ए-दरबार में रहना है बख़्त सितारों का उन आँखों में चमकना और गुल का मुक़द्दर लब-ओ-रुख़्सार में रहना रौनक़ सी लिए शहर के रस्तों पर बिखरना तन्हाई की सूरत दर-ओ-दीवार में रहना 'सरमद' तपिश-ए-नार-ए-सुख़न में हूँ कि मुझ को गुल करता रहा शो'ला-ओ-अंगार में रहना