आलम-ए-कू-ए-यार बाक़ी है आशिक़ों का दयार बाक़ी है 'मीर' का खो चुके ये बद-क़िस्मत और सब का मज़ार बाक़ी है बज़्म से तेरी आए हैं उठ कर आह अब तक ख़ुमार बाक़ी है दा'वा-ए- इश्क़ है किया हम ने हैफ़ दिल में क़रार बाक़ी है ग़ुंचा-ओ-बाग़ राह ताके हैं अब के आओ बहार बाक़ी है अपनी तन्हाइयाँ तो गिन ली हैं वहशतों का शुमार बाक़ी है ख़ाना-ए-दिल में रहती वीरानी ताक़चे पर ग़ुबार बाक़ी है आल-ए-हैदर 'मुराद' है नसबी मद्दाह-ए-जुल्फ़िक़ार बाक़ी है