आलम-सक्र में जो कहता हूँ कहने दे मुझे मेरे अंदर तो यही कुछ है सो रहने दे मुझे आ कभी लम्स को यकसर नज़र-अंदाज़ करें आँख से आँख मिला ख़ून में बहने दे मुझे दूर जा कर भी मिरी रूह में मौजूद न रह तू कभी अपनी जुदाई भी तो सहने दे मुझे तू मुझे बनते बिगड़ते हुए अब ग़ौर से देख वक़्त कल चाक पे रहने दे न रहने दे मुझे जान-ए-'ख़ुर्शीद' मुझे साए से महरूम न रख मैं गहन में अगर आता हूँ तो गहने दे मुझे