आँधी की वो ज़द पर थे लौ के अपने तेवर थे मलबा मलबा देख तो लूँ और यहाँ किस के घर थे मेरा जिस्म था शीशे का उस के हाथ में पत्थर थे चारों ओर से हमला था हम लेकिन मुट्ठी भर थे शायद आधा पानी था छलके छलके गागर थे पगड़ी उन के सर पर थी जिन के हाथों में सर थे बोसीदा सी कश्ती थी तूफ़ानों के मंज़र थे आप अभी की बात करो अबतर थे जब अबतर थे