आँख से अश्क क्यों बहें चर्ख़ पे जाए आह क्यों फ़ाश करे जो राज़-ए-दिल वो हो मिरी निगाह क्यों कैसी मसल ग़लत है ये दिल को हो दिल से राह क्यों तुम पे ज़माना शेफ़्ता तुम को किसी से चाह क्यों जो हो मुक़य्यद-ए-अदा तेरा वो क़ौल किस लिए जिस में जगह की क़ैद हो तेरी वो जल्वा-गाह क्यों ग़ैर ने बद-गुमाँ किया मैं ने ग़लत कहा बजा मेरा ही दिल सही मगर मेरा वो ख़ैर-ख़्वाह क्यों क़ाबिल-ए-बाज़-पुर्स हैं मेरी ही सख़्त-जानियाँ हाए ये मौरिद-ए-इताब ख़ंजर-ए-बे-गुनाह क्यों सारी ख़ुदाई के लिए जबकि वो बज़्म आम है मुझ पे है पासबान-ए-दर्द दीदा-ए-इंतिबाह क्यों कोई अलम अगर नहीं फिर ये 'मुनीर' किस लिए आँख में अश्क दिल पे हाथ लब पे ये आह आह क्यों