आँख टपकाए ना लहू दिल का फ़ाएदा कुछ तो ग़म के हासिल का दिन भिकारी की आरज़ू की तरह रात कश्कोल जैसे साइल का किस को नज़्म-ए-हयात ने मारा शोर ज़िंदाँ में है सलासिल का ज़ेहन ख़ाली है बाँझ औरत सा जिस्म गो आइना मुक़ाबिल का ज़ीस्त थी इक सितम मसीहा का मौत एहसान मेरे क़ातिल का