आँसू बेचे ज़ख़्म ख़रीदे आहों को आधार किया प्यार के नाम पे हम ने जग में घाटे का ब्योपार किया जिस से नाता तोड़ चुके हैं वो भी जिस्म हमारा है वो भी अपना ही चेहरा है जिस से हम ने प्यार किया कैसे कैसे झूट तराशे रिश्तों की सच्चाई ने कितनी धुँदली रेखाओं को आँखों ने आकार किया धीरे धीरे हर सरगोशी सन्नाटों में डूब गई अब तो ये भी याद नहीं है किस ने क्या इक़रार किया क्यों अंधी अभीलाशा बाँधी साँसों से नादानी ने आख़िर क्यों दीवार-ओ-दर पर रंगों ने उपकार किया सदियों की प्यासी धरती पर अंगारे से उग आए जिस दिन मेरी सच्चाई से दुनिया ने इंकार किया ताबिश-ए-मेहर-ओ-माह से जिस दिन ज़ुल्मत-ए-फ़िक्र हुई रौशन हम ने अपने ज़ौक़-ए-नज़र को वरक़ वरक़ तह-दार किया कम्बल ओढ़े वर्ना रातें गहरे सपनों में गुम थीं भला हुआ सूरज ने आकर धरती को बेदार किया इस एहसान का बदला शायद चुका न पाऊँ मैं 'पर्वाज़' धज्जी धज्जी कर के दिल को जो मुझ से बेज़ार किया