आओ फिर मिल जाएँ सब बातें पुरानी छोड़ कर जा नहीं सकते कहीं दरिया रवानी छोड़ कर वो मिरे कासे में यादें छोड़ कर यूँ चल दिया जिस तरह अल्फ़ाज़ जाते हों मआ'नी छोड़ कर तुम मिरे दिल से गए हो तो निगाहों से भी जाओ फिर वहाँ ठहरा नहीं करते निशानी छोड़ कर अब सुना है आम शहरी की तरह फिरते हो तुम क्या मिला है मेरे दिल की हुक्मरानी छोड़ कर बस अभी तूफ़ान-ए-ग़म का तज़्किरा आया ही था सब घरों को चल दिए मेरी कहानी छोड़ कर इस तरह मेरे क़बीले में कभी होता नहीं कैसे जाऊँ तेरे ग़म की मेज़बानी छोड़ कर ये कलाम-उल-लाह कब है जो सदा बाक़ी रहे दार-ए-फ़ानी से चले हैं नक़्श-ए-फ़ानी छोड़ कर