आओ कोई तफ़रीह का सामान किया जाए फिर से किसी वाइ'ज़ को परेशान किया जाए बे-लग़्ज़िश-ए-पा मस्त हूँ उन आँखों से पी कर यूँ मोहतसिब-ए-शहर को हैरान किया जाए हर शय से मुक़द्दस है ख़यालात का रिश्ता क्यूँ मस्लहतों पर उसे क़ुर्बान किया जाए मुफ़्लिस के बदन को भी है चादर की ज़रूरत अब खुल के मज़ारों पे ये एलान किया जाए वो शख़्स जो दीवानों की इज़्ज़त नहीं करता उस शख़्स का भी चाक गरेबान किया जाए पहले भी 'क़तील' आँखों ने खाए कई धोके अब और न बीनाई का नुक़सान किया जाए