आओ कुछ ज़िक्र-ए-रोज़गार करें दौर-ए-हाज़िर के ग़म शुमार करें और भी बोझ हैं इसी सर पर आरज़ूएँ कहाँ सवार करें आप नुक़सान सह न पाएँगे आप दिल का न कारोबार करें हम से तो बे-रुख़ी नहीं होती जो भी चाहें हमारे यार करें आबला-पा पयाम छोड़ गए लोग नज़्ज़ारा-ए-बहार करें है तक़ाज़ा-ए-ग़ैरत-ए-इमरोज़ ज़ोर-ए-बाज़ू पे इंहिसार करें कुछ तो फ़रमाइए कि 'आसी-जी' क्या करें किस पे ए'तिबार करें