आप अपने रक़ीब हैं हम लोग किस क़दर बद-नसीब हैं हम लोग दौलत-ए-दर्द से हैं माला-माल गो ब-ज़ाहिर ग़रीब हैं हम लोग हम को हर हाल में उजड़ना है आशिक़ों का नसीब हैं हम लोग जितने अपनी ख़ुदी से दूर हुए उतने उन से क़रीब हैं हम लोग फिर न सँवरे बिगड़ के हम शायद दुश्मनों का नसीब का नसीब हैं हम लोग मौत से खेलते हैं शाम-ओ-सहर ज़िंदगी के क़रीब हैं हम लोग उन की नज़रों से दूर हैं फिर भी उन के दिल से क़रीब हैं हम लोग हम से पूछो हक़ीक़तें ग़म की देर से ग़म-नसीब हैं हम लोग किस को जा कर सुनाईं हाल अपना अजनबी हैं ग़रीब हैं हम लोग दोश-ए-हस्ती पे हार हैं 'रा'ना' आज-कल के अदीब हैं हम लोग