आप बैठे हैं बालीं पे मेरी मौत का ज़ोर चलता नहीं है मौत मुझ को गवारा है लेकिन क्या करूँ दम निकलता नहीं है ये अदा ये नज़ाकत भरा सिन मेरा दिल तुम पे क़ुर्बान लेकिन क्या सँभालोगे तुम मेरे दिल को जब ये आँचल सँभलता नहीं है मेरे नालों की सुन कर ज़बानें हो गई मोम कितनी चटानें मैं ने पिघला दिया पत्थरों को इक तेरा दिल पिघलता नहीं है शैख़ जी की नसीहत भी अच्छी बात वाइज़ की भी ख़ूब लेकिन जब भी छाती हैं काली घटाएँ बिन पिए काम चलता नहीं है देख ले मेरी मय्यत का मंज़र लोग कांधा बदलते चले हैं एक तेरी भी डोली चली है कोई कांधा बदलता नहीं है मय-कदे के सभी पीने वाले लड़खड़ा कर सँभलते हैं लेकिन तेरी नज़रों का जो जाम पी ले उम्र-भर वो सँभलता नहीं है