आप जब मुस्कुराए ग़ज़ल हो गई कुछ क़रीब और आए ग़ज़ल हो गई तोड़ कर अपने गुलशन से ताज़ा गुलाब मेरी ख़ातिर वो लाए ग़ज़ल हो गई लब पे फ़रियाद तो दिल में सौ इज़्तिराब अश्क आँखों में आए ग़ज़ल हो गई वाए महरूमियाँ हाए मजबूरियाँ दर्द-ए-दिल में दबाए ग़ज़ल हो गई मैं ने पूछा मोहब्बत उन्हें मुझ से है चुप रहे मुस्कुराए ग़ज़ल हो गई जब भी अंगड़ाई तौबा-शिकन कोई ले एक फ़ित्ना उठाए ग़ज़ल हो गई दिल में 'ख़ुशतर' जो अरमाँ थे सोए हुए ख़ूब-रू इक जगाए ग़ज़ल हो गई