आप के दर से किधर जाएँगे ख़ाक हो जाएँगे मर जाएँगे मत निगाहों से गिराना हम को टूट जाएँगे बिखर जाएँगे या पिघल जाएँगे गर्मी से आह या तो सर्दी से ठिठुर जाएँगे मोटी मोटी सी दिखा कर आँखें वो समझते हैं कि डर जाएँगे इश्क़ ने और बिगाड़ा यारो वर्ना समझे थे सुधर जाएँगे मेरे आ'ज़ा का क्या होगा अल्लाह उन के गेसू तो सँवर जाएँगे दाग़ दिल के दिखा तो दूँ लेकिन देख कर नाज़नीं डर जाएँगे हाए जन्नत में क्या होगा अपना दिल हमारे वहाँ भर जाएँगे गुज़री जब हम पे क़यामत 'हावी' ख़ैर ये दिन भी गुज़र जाएँगे