आप की संगत का ये अंदाज़ मन को भा गया गर्दिश-ए-दौराँ में हम को मुस्कुराना आ गया टूट कर बरसा जो बादल घुप अँधेरा छा गया था उजाला दिन का लेकिन रौशनी को खा गया क़ातिलों ने जिस्म मेरा रेज़ा रेज़ा कर दिया ख़ून बिखरा रंग बन कर वादियाँ चमका गया आग से तो बच गया मैं मौत आनी थी मगर बचते बचते फिर भी मैं पानी से धोका खा गया हम मोहब्बत में शिकस्ता-पा हुए तो ग़म नहीं रफ़्ता-रफ़्ता दोस्तो तुम को तो चलना आ गया