आप की शोख़ी-ए-इंकार नई बात नहीं ये तो मा'मूल है सरकार नई बात नहीं आप को ख़ून-ए-तमन्ना पे तअ'ज्जुब क्यूँ है रोज़ मर जाते हैं बीमार नई बात नहीं चोट पड़ती नहीं एहसास पे अब मुद्दत से आप की तल्ख़ी-ए-गुफ़्तार नई बात नहीं हुस्न-ए-इख़्लास के बदले में जुनूँ मिलता है आम है शामत-ए-किरदार नई बात नहीं पुर्सिश-ए-हाल के बा'द उन को तरद्दुद कैसा कह चुके हम तो कई बार नई बात नहीं