आप को ग़ैर से उल्फ़त हो गई हाँ जभी तो मुझ से नफ़रत हो गई इन बुतों से तर्क-ए-उल्फ़त हो गई मुझ पे ख़ालिक़ की इनायत हो गई हिज्र में उस के ये वहशत हो गई अपने साए से भी नफ़रत हो गई ख़्वाब में उन की ज़ियारत हो गई आज पूरी दिल की हसरत हो गई चलिए झगड़ों से फ़राग़त हो गई जान अपनी नज़्र-ए-फ़ुर्क़त हो गई हिज्र में मुझ पे जो कुछ गुज़री न पूछ हो गई जो मेरी हालत हो गई हद तिरी जौर-ओ-जफ़ा-ओ-ज़ुल्म की हो गई ओ बे-मुरव्वत हो गई अब तो वो सूरत भी दिखलाते नहीं चार दिन साहब-सलामत हो गई मुझ को इक दिन है बजाए एक साल आप की दूरी क़यामत हो गई जान दी नाहक़ को मैं ने हिज्र में मुफ़्त उस बुत से नदामत हो गई दी ये साक़ी ने मुझे कैसी शराब बद-मज़ा मेरी तबीअ'त हो गई ग़ौर से सुनते हैं इक इक हर्फ़ वो दास्तान-ए-ग़म हिकायत हो गई सच कहा ऐ दिल बुतों के ज़ुल्म से जान आजिज़ फ़िल-हक़ीक़त हो गई उस के कूचे की गदाई ऐ 'फहीम' मेरे हक़ में बादशाहत हो गई