आप क्या मिल गए ज़िंदगी मिल गई जिस से महरूम था वो ख़ुशी मिल गई ज़िंदगी में अंधेरा अंधेरा सा था आप को देख कर रौशनी मिल गई मो'जिज़ा इक हुआ तुम मिले दफ़अ'तन मेरे लब सिल गए ख़ामोशी मिल गई उन से पूछा कि कैसी गुज़रती है अब देखा आँखों में उन की नमी मिल गई मैं ने रब से कहा दे दे दो गज़ ज़मीं मुझ को महबूब की जब गली मिल गई