आप तो इश्क़ में दानाई लिए बैठे हैं और दिवाने हैं कि रुस्वाई लिए बैठे हैं हम ख़ाना-ए-हिज्र में यादें तिरी रक़्साँ होंगी हम इसी शौक़ में तन्हाई लिए बैठे हैं तजरबा हम पे तग़ाफ़ुल का न कीजे वर्ना कुछ हुनर हम भी करिश्माई लिए बैठे हैं एक मुद्दत से वो वहशत है कि बस क्या कहिए घर में हम इक दिल-ए-सहराई लिए बैठे हैं तक़्वियत अज़्मत-ए-किरदार से पाई है कि हम ना-तवानी में तवानाई लिए बैठे हैं तालियाँ आज यहाँ ख़ूब बजेंगी 'नुसरत' सब के सब अपने तमाशाई लिए बैठे हैं