आप तो रात सो लिए साहब हम ने तकिए भिगो लिए साहब दर्द की धूल ग़म की बाद-ए-सुमूम घर का दरवाज़ा खोलिए साहब उस के दामन को छू के आए हैं हम को फूलों में तौलिए साहब तल्ख़ियों का मिज़ाज बदलेगा ज़हर में क़ंद घोलिए साहब देखिए ख़ुद को मेरे चेहरे में अक्स शीशे में तौलिए साहब हम भी मुँह में ज़बान रखते हैं इतना ऊँचा न बोलिए साहब 'मौज' से मौज है इशारा-कुनाँ बादबानों को खोलिए साहब