आपस में कोई रब्त का इम्कान भी न था दोनों तरफ़ ये मरहला आसान भी न था चारागरों की पुर्सिश-ए-पैहम के बावजूद मैं मुतमइन न था तो परेशान भी न था पहलू बदल बदल के वो करता था गुफ़्तुगू मैं सब समझ रहा था कि अंजान भी न था बात उस की दिल में मेरे उतरती चली गई वो अजनबी था और मिरा मेहमान भी न था क्यूँ मुझ को मेज़बानी का मौक़ा न मिल सका मैं इस क़दर तो बे-सर-ओ-सामान भी न था वो कितना सर्द-मेहर था मालूम हो गया वा'दा-ख़िलाफ़ हो के पशेमान भी न था 'कौसर' अमीर-ए-शहर से मिलने में उज़्र क्यूँ कुछ फ़ाएदा नहीं था तो नुक़सान भी न था