आप को देख कर देखता रह गया क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया बात क्या है कि सब ग़र्क़-ए-दरिया हुए इक ख़ुदा रह गया नाख़ुदा रह गया सोच कर आओ कू-ए-तमन्ना है ये जान-ए-मन जो यहाँ रह गया रह गया दिल के वहशत-सरा से ख़ुदा जाने क्यों सब गए एक दाग़-ए-वफ़ा रह गया उन की आँखों से कैसे छलकने लगा मेरे होंटों पे जो माजरा रह गया ऐसे बिछड़े सभी रात के मोड़ पर आख़िरी हम-सफ़र रास्ता रह गया