आराम फिर कहाँ है जो हो दिल में जा-ए-हिर्स आसूदा ज़ेर-ए-ख़ाक नहीं आश्ना-ए-हिर्स मुमकिन नहीं है ये कि भरे कासा-ए-तमअ दिन में करोड़ घर जो फिरा दे गद-ए-हिर्स इंसाँ न हों ज़लील ज़माने के हाथ से ज़िल्लत किसी को कोई न देवे सिवा-ए-हिर्स कर मुँह को टुक ब-सू-ए-क़नाअत ये हर्फ़ मान रहती है लाख तरह की आफ़त क़िफ़ा-ए-हिर्स नादाँ तलाश-ए-तुर्रा-ए-ज़र से तो बाज़ आ जूँ शम्अ ये न हो कि तिरा सर कटाए हिर्स अपने सिवा किसी को न पाया हरीफ़ हैफ़ की क़त्अ रोज़गार ने हम पर क़बा-ए-हिर्स 'सौदा' बसर हो ख़ूबी से औक़ात हर तरह पर दरमियाँ न होवे ब-शर्त-ए-कि पा-ए-हिर्स