आरज़ू-ए-दवाम करता हूँ ज़िंदगी वक़्फ़-ए-आम करता हूँ आप से इख़्तिलाफ़ है लेकिन आप का एहतिराम करता हूँ मुझ को तक़रीब से तअल्लुक़ क्या मैं फ़क़त एहतिमाम करता हूँ दर्स-ओ-तदरीस इश्क़ मज़दूरी जो भी मिल जाए काम करता हूँ जुस्तुजू ही मिरा असासा है जा इसे तेरे नाम करता हूँ हाँ मगर बर्ग-ए-ज़र्द की सूरत सुब्ह को मैं भी शाम करता हूँ वक़्त गुज़रे पे आए हो 'असलम' ख़ैर कुछ इंतिज़ाम करता हूँ