आरज़ू-ए-दिल-ए-सद-चाक है दरमाँ होना या'नी कुछ और तिरी तेग़ का एहसाँ होना मौत आना है ग़म-ए-हिज्र का दरमाँ होना ये वो मुश्किल है कि आसान नहीं आसाँ होना मक़्सद-ए-ज़ीस्त है क़ुर्बां ब-दिल-ओ-जाँ होना नाम एहसास-ए-फ़राएज़ का है इंसाँ होना बन गए ताइर-ए-तस्वीर क़फ़स में आ कर रास आया न असीरों को ख़ुश-इल्हाँ होना रह गई अब तो यही एक इबादत अपनी याद कर कर के गुनाहों को पशेमाँ होना बाइस-ए-मर्ग हुई जोशिश-ए-शौक़-ए-बिस्मिल उस की क़िस्मत में न था आप का एहसाँ होना आइना-दार-ए-हक़ीक़त है ख़ुशा जोश-ए-जुनूँ ज़र्रे ज़र्रे का बयाबाँ के बयाबाँ होना मेरी बालीं पे न बैठो कि बहुत मुश्किल है जान से दूर शरीक-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ होना मुस्कुरा कर ये पस-ए-क़त्ल भी कहता है 'शमीम' वो भी हो जाए जो बाक़ी है मिरी जाँ होना