आसाँ नहीं है तन्हा दर उस का बाज़ करना लाज़िम है पासबाँ से अब हम को साज़ करना गर हम मुशीर होते अल्लाह के तो कहते यानी विसाल की शब या रब दराज़ करना उस का सलाम मुझ से अब क्या है गर्दिश-ए-रौ तिफ़्ली में मैं सिखाया जिस को नमाज़ करना अज़-बस-कि ख़ून दिल का खाता है जोश हर दम मुश्किल हुआ है हम को इख़्फ़ा-ए-राज़ करना बा-यक-नियाज़ उस से क्यूँकर कोई बर आवे आता हो सौ तरह से जिस को कि नाज़ करना करते हैं चोट आख़िर ये आहुआन-ए-बदमस्त आँखों से उस की ऐ दिल टुक एहतिराज़ करना ऐ आह उस के दिल में तासीर हो तो जानूँ है वर्ना काम कितना पत्थर गुदाज़ करना होवेगी सुब्ह रौशन इक दम में वस्ल की शब बंद-ए-क़बा को अपने ज़ालिम न बाज़ करना ऐ 'मुसहफ़ी' हैं दो चीज़ अब यादगार-ए-दौराँ उस से तू नाज़ करना मुझ से नियाज़ करना