आशिक़ी जुरअत-ए-इज़हार तक आए तो सही वो ज़रा ख़ौफ़-ए-जहाँ दिल से मिटाए तो सही कैसे उठते हैं क़दम देखिए मंज़िल की तरफ़ दिल के इरशाद पे सर कोई झुकाए तो सही उस के क़दमों में रिफ़ाक़त के ख़ज़ाने होंगे मेरी जानिब वो क़दम अपने बढ़ाए तो सही जज़्बा-ए-जोश-ए-मुहब्बत तुझे सौ बार सलाम मेरी आहट पे वो दहलीज़ तक आए तो सही हर ग़ज़ल मेरी क़सीदा ही सही तेरा मगर तुझ को अशआ'र में यूँ कोई सजाए तो सही दास्ताँ होंगे ख़ुद उस उजड़े हुए शहर के ग़म इस अँधेरे में कोई शम्अ' जलाए तो सही ख़ुद-बख़ुद रास्ता देगा ये ज़माना 'तालिब' दोस्ती के लिए वो हाथ बढ़ाए तो सही