आशिक़ी क्या हर बशर का काम है मेरे दिल मेरे जिगर का काम है हो हरी शाख़-ए-तमन्ना या न हो सींच देना चश्म-ए-तर का काम है बढ़ चले पैक-ए-तसव्वुर का क़दम अब यहाँ क्या नामा-बर का काम है दिल मिरा ले जाने वाला कौन था ये किसी जादू-नज़र का काम है हम से क्या हो वस्फ़ क़ातिल का बयाँ ये लब-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर का काम है मौत जब आए तो राही जान हो इस सफ़र में राहबर का काम है फ़ैसला होने में दुश्वारी है क्या तेरे ख़ंजर मेरे सर का काम है आज आँसू तुम ने पोंछे भी तो क्या ये तो अपना उम्र भर का काम है गुल दिखाते हैं हमें क्या ज़ख़्म-ए-तन दिल पे खाना कोई चरका काम है दिल से लाए लब पे हम आह-ओ-फ़ुग़ाँ अब तुझे लाना असर का काम है दर-ब-दर फिरते ही गुज़री चर्ख़ को ये उसी बेदाद-गर का काम है आँखों आँखों में उड़ा लेते हैं दिल दिलरुबाई भी नज़र का काम है तेग़ क्यूँ चलने में बल खाने लगी ये तिरी नाज़ुक कमर का काम है सीने से कुछ हट के है दिल की जगह इस जगह तिरछी नज़र का काम है बे-चले ही पाँव देते हैं जवाब मंज़िल-ए-उल्फ़त में सर का काम है क़ुदसियों से कौन बाज़ी ले गया ये बशर है ये बशर का काम है मोतियों से मुँह तिरा भरना 'जलील' आसिफ़-ए-आली-गुहर का काम है