आशिक़ो पाँव न उखड़े वहीं ठहरे रहना पर्दा उठता है रुख़-ए-यार से सँभले रहना अर्श पर से भी तुम्हें खींच के ले आएगी कशिश-ए-आशिक़-ए-बेताब से बचते रहना तड़प उट्ठा दिल-ए-बेताब किसी आशिक़ का ये मिरा फ़र्ज़ है कह देता हूँ बचते रहना डूब कर बहर-ए-मोहब्बत में निकलना कैसा पार होने की तमन्ना है तो डूबे रहना माअ'रके से नहीं हटता कोई आशिक़ पीछे सर हथेली पे धरे आगे ही बढ़ते रहना नज़र आ जाए जो वो तौबा-शिकन ऐ 'अकबर' दिल को हाथों से दबाए हुए बैठे रहना