आशियाँ अपना बिना दीवार-ओ-दर होता नहीं बे-मुरव्वत काश ये तेरा शहर होता नहीं क्यूँ पशेमाँ हो के तुम ने दर्द-ए-दिल मुझ को दिया हर गुनह संगीन ऐसा जान कर होता नहीं आप का था साथ तो थी ज़िंदगी पर क्या कहें अब सफ़र ऐसा है जिस में हम-सफ़र होता नहीं है ग़ज़ब ढाता अजब ये कार-ओ-बार-ए-इंतिज़ार रात गुज़रे तारे गिन, पर दिन बसर होता नहीं आए हैं सुनते कि ऐसा वक़्त भी आता है जब हो दवा या फिर दुआ कुछ कारगर होता नहीं दुनिया से लड़ जाइए आसान है कहना हुज़ूर देखिए हर शख़्स में इतना जिगर होता नहीं